गढ़वाल का परमार पंवार वंश
गढ़वाल छेत्र सैन्य शक्ति के अभाव में 52 छोटे-छोटे गढ़ों (किले) में बंटा हुआ था। यह गढ़ ठकुरी राजाओं के अधीन थे। पंवार वंश का संस्थापक एवं चांदपुरगढ़ का राजा भानुप्रताप अपने समकालीन गढ़पतियों में सर्वाधिक शक्तिशाली था। परमार वंश का आदि पुरुष कनक पाल था। कनक पाल गढ़वाल तीर्थाटन पर घूमने आया था कनक पाल नार गुजरात का शासक था। इसने 888 ई• में चमोली गढ़वाल क्षेत्र में परमार राजवंश की स्थापना की। भक्त दर्शन सिंह के परमार राजवंश की उत्पत्ति माउन्ट आबू की तलहटी पर स्थित चादॅपुरगढ़ चमोली नामक नगर में हुई। कनक पाल ने उस समय चादॅपुरगढ़ के राजा भानुप्रताप की बेटी से विवाह कर गढ़वाल में परमार वंश की शुरुआत की। परमारो की राजकीय भाषा गढ़वाली थी। प्रारंभ में परमार कत्यूरियो के अधीन थे। पंवार वंश या परमार वंश ने 888 से अगस्त 1949 (टिहरी राज्य के भारत में विलय ) तक गढ़वाल छेत्र पर शाशन किया. इस दौरान 60 राजाओं ने शाशन को चलाया
अजयपाल-- अजयपाल इस वंश का 37 वां शासक था। कवि भरत के मनोदय काव्य में इसकी तुलना श्री कृष्ण से की तथा कुबेर से की गईं अजयपाल ने लगभग 1515 में। 52 गढ़ो का एकीकरण किया। गढ़वाल के एकीकरण का श्रेय इन्हें ही जाता है अजयपाल ने अपनी राजधानी गोरखनाथ सम्प्रदाय के सन्यासी के निवास स्थान देवलगढ़ (1512) में स्थापित की। अजयपाल गोरखनाथ सम्प्रदाय का अनुयायी था। इसने अपने अंतिम समय में अपनी राजधानी श्रीनगर (1517) की। इन्हें गढ़वाल का अशोक कहा गया और पासा का प्रचलन किया निसंदेह ही राजा अजयपाल को गढ़वाल छेत्र का सबसे बलशाली राजा माना जा सकता है। इन्होने ही कत्युरी शासकों से स्वर्ण सिंहासन छीना था। देवलगढ़ स्तिथ राजराजेश्वरी मंदिर का निर्माण भी राजा अजयपाल द्वारा हुआ। राजा अजयपाल का शासनकाल(19 वर्ष) युद्ध एवं राज्य सुधार में बीता, 59 वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु हुई।
बलभद्रशाह-- इसे दिल्ली के शासक ने शाह की उपाधि दी। सर्वप्रथम अपने नाम में शाह की उपाधि धारण करने का श्रेय जाता है। लोदी वंश के शासक बहलोल लोदी ने शाह की उपाधि से नवाजा था। राजा मानशाह इसने चन्द शासकों को हराकर कुमाऊं में अधिकार किया। इसने अलकनंदा तटपर मानपुर नगर बसाया। इसके दरबारी कवि मानोदय काव्य की रचना की। इसे मुगल बादशाह में ज्योतिक राव नाम से जाना जाता है।
महीपति शाह-- यह परमार वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। इसके तीन अद्वितीय सेनापति थे।
1-माधव सिंह भण्डारी (गर्भ भंजक के नाम से जाना जाता है।) 2- रित्वौला लोदी
3- बनवारी दास
इन्होंने तिब्बत रोहेलखण्ड तथा जौनसार क्षेत्र में अधिकार किया माधव सिंह ने महीपति शाह , रानी कर्णावती तथा पृथ्वीपति शाह के समय में सेवा दी। इसने अपने पौथिक गांव में खुले नहरो का निर्माण कराया।
रानी कर्णावती-- महिपतिशाह की पत्नी जो अपने पुत्र पृथ्वीपतिशाह की भू-संरक्षिका के तौर पर गद्दी पर बैठी । मुगल शहजादा दाराशिकोह के पुत्र सुलेमान शिकोह को शरण देने पर 1636ई• में शाहजहां के सेनापति नवाजत खाँ ने आक्रमण कर दिया शाहजहां के सेनापति नवाजत खाँ व सैनिकों के नाक कटवाने के कारण इसे नाककटी रानी कहा जाने लगा।
पृथ्वीपतिशाह-- 7 वर्ष की अल्पायु में गद्दी में बैठा इसके अभिलेख देवप्रयाग व रघुनाथ मन्दिर से प्राप्त हुए। पृथ्वीशाह ने सन 1646 में राजगदी संभाली, उस समय दिल्ली में औरंगजेब अपने पिता शाहजहाँ को तख़्त से उतार,बंदीगृह में डाल कर अपने भाइयों का मारने की फिराक में था। भाइयों को मारकर ही वो तख़्त तक पहुच सकता था क्यूंकि वह सबसे छोटा था। उसका सबसे बड़ा भाई दाराशिकोह और उसके पश्चात उसका पुत्र सुलेमान शिकोह तख़्त के अधिकारी थे। इन्ही से उन्हें बड़ा भय था। उस समय गढ़वाल नरेश पृथ्वीशाह ने सुलेमान शिकोह को राजा जयसिंह के कहने पे पनाह दी। औरंगजेब नेसुलेमान शिकोहको पकड़ने के लिए कई प्रयास किये परन्तु राजा पृथ्वीशाह की शरण में होने की वजह से वह कामयाब नही हो पाया।
राजा फ़तेहशाह--फ़तेहशाह अगले प्रसिद्ध राजा हुए, इन्होनेभंगिनी के युद्ध(18सितम्बर1688) मं। शिवालिक राजाओ की तरफ से गुरु गोविन्द सिंह के विरुद्ध युद्ध लड़ा था।
राजा फतेशशाह -- यह भी अल्पायु में गद्दी पर बैठा इसने अपने दरबार में नवरत्न रखने की प्रथा शुरू की। फतेशशाह ने कर्णानाथ की स्थापना की इसके दरबारी कवि भूषण ने फतेह प्रकाश नामक ग्रंथ की रचना की। फतेशशाह ने सिख गुरू रामराय को देहरादून में 3 गांव दान दिये।
प्रधुम्नशाह-- ये गोरखाओ के आक्रमण के समय गढ़वाल के शासक थे। 14 मई 1804 में देहरादून खुडबुडा के युद्ध में गोरखाओ से वीरगति को प्राप्त हुए। प्रधुम्नशाह के दो पुत्र प्रीतमशाह व सुदर्शनशाह थे। प्रीतमशाह को गोरखों ने बन्दी बनाकर काठमांडू भेज दिया जबकि सुदर्शनशाह ने हरिद्वार में हर्षदेव जोशी की सहायता से अंग्रेजों को आमंत्रित किया।
सुदर्शनशाह-- अक्तूबर 1814 में अंग्रेज गवर्नर वार्ड हेस्टिगज के विरुद्ध अंग्रेजी सेना भेजी व 1815 में गढ़वाल गोरखाओ से आजाद हो गया। अंग्रेजो को लड़ाई का खर्चा न देने के कारण अंग्रेजो ने श्रीनगर पर कब्जा कर लिया। तब सुदर्शनशाह ने अपनी राजधानी श्रीनगर से टिहरी गढ़वाल स्थापित की। 28 अक्तूबर 1815 को सुदर्शनशाह द्वारा टिहरी रियासत की स्थापना की। सुदर्शनशाह ने कवि सूरत के नाम पर सभासार नामक दो ग्रंथों की रचना की।
राजा प्रतापशाह-- राजा प्रतापशाह ने प्रताप नगर बसाया इसके समय में टिहरी में अंग्रेजी शिक्षा आरंभ हुई।
राजा कीर्तिशाह-- इन्हें अंग्रेजों द्वारा The Knight Commander तथा Campanion of. India सी• एस• आई• की उपाधि प्राप्त हुई इसने टिहरी में PWD की स्थापना की। इसने कृषि बैंक की स्थापना की। राजा कीर्ति शाह(1886-1913) श्रीनगर के निकट ने1894 मेंकीर्तिनगरकी स्थापना की
राजा नरेन्द्रशाह-- महाराजा नरेन्द्रशाह(1913 -1946) द्वारा टिहरी राज्य की राजधानी टिहरी से नरेन्द्रनगर स्थानान्तरित करने से नरेन्द्रनगर शहर अस्तित्व में आया, पहले यहओडाथलीनाम से जाना जाता था। यह स्थान शिवालिक पहाड़ियों में आता है। इसके समय में जन आंदोलन की शुरुआत हुई। इन्होने अपने जीते जी अपने पुत्र मानवेन्द्र शाह को राजा नियुक्त कर दिया था।
राजा मानवेन्द्रशाह-- यह अंतिम परमार शासक था 14 जनवरी 1948 को राजतंत्र का तख्ता पलट हुआ जनता ने भागीरथी पुल पर रोककर वापस भेज दिया जनता द्वारा चुनी गई सरकार का गठन हुआ 1 अगस्त 1949 में टिहरी रियासत का विलय भारत में हुआ और उस समय उत्तर प्रदेश का जिला बना
गढ़वाल छेत्र सैन्य शक्ति के अभाव में 52 छोटे-छोटे गढ़ों (किले) में बंटा हुआ था। यह गढ़ ठकुरी राजाओं के अधीन थे। पंवार वंश का संस्थापक एवं चांदपुरगढ़ का राजा भानुप्रताप अपने समकालीन गढ़पतियों में सर्वाधिक शक्तिशाली था। परमार वंश का आदि पुरुष कनक पाल था। कनक पाल गढ़वाल तीर्थाटन पर घूमने आया था कनक पाल नार गुजरात का शासक था। इसने 888 ई• में चमोली गढ़वाल क्षेत्र में परमार राजवंश की स्थापना की। भक्त दर्शन सिंह के परमार राजवंश की उत्पत्ति माउन्ट आबू की तलहटी पर स्थित चादॅपुरगढ़ चमोली नामक नगर में हुई। कनक पाल ने उस समय चादॅपुरगढ़ के राजा भानुप्रताप की बेटी से विवाह कर गढ़वाल में परमार वंश की शुरुआत की। परमारो की राजकीय भाषा गढ़वाली थी। प्रारंभ में परमार कत्यूरियो के अधीन थे। पंवार वंश या परमार वंश ने 888 से अगस्त 1949 (टिहरी राज्य के भारत में विलय ) तक गढ़वाल छेत्र पर शाशन किया. इस दौरान 60 राजाओं ने शाशन को चलाया
अजयपाल-- अजयपाल इस वंश का 37 वां शासक था। कवि भरत के मनोदय काव्य में इसकी तुलना श्री कृष्ण से की तथा कुबेर से की गईं अजयपाल ने लगभग 1515 में। 52 गढ़ो का एकीकरण किया। गढ़वाल के एकीकरण का श्रेय इन्हें ही जाता है अजयपाल ने अपनी राजधानी गोरखनाथ सम्प्रदाय के सन्यासी के निवास स्थान देवलगढ़ (1512) में स्थापित की। अजयपाल गोरखनाथ सम्प्रदाय का अनुयायी था। इसने अपने अंतिम समय में अपनी राजधानी श्रीनगर (1517) की। इन्हें गढ़वाल का अशोक कहा गया और पासा का प्रचलन किया निसंदेह ही राजा अजयपाल को गढ़वाल छेत्र का सबसे बलशाली राजा माना जा सकता है। इन्होने ही कत्युरी शासकों से स्वर्ण सिंहासन छीना था। देवलगढ़ स्तिथ राजराजेश्वरी मंदिर का निर्माण भी राजा अजयपाल द्वारा हुआ। राजा अजयपाल का शासनकाल(19 वर्ष) युद्ध एवं राज्य सुधार में बीता, 59 वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु हुई।
बलभद्रशाह-- इसे दिल्ली के शासक ने शाह की उपाधि दी। सर्वप्रथम अपने नाम में शाह की उपाधि धारण करने का श्रेय जाता है। लोदी वंश के शासक बहलोल लोदी ने शाह की उपाधि से नवाजा था। राजा मानशाह इसने चन्द शासकों को हराकर कुमाऊं में अधिकार किया। इसने अलकनंदा तटपर मानपुर नगर बसाया। इसके दरबारी कवि मानोदय काव्य की रचना की। इसे मुगल बादशाह में ज्योतिक राव नाम से जाना जाता है।
महीपति शाह-- यह परमार वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। इसके तीन अद्वितीय सेनापति थे।
1-माधव सिंह भण्डारी (गर्भ भंजक के नाम से जाना जाता है।) 2- रित्वौला लोदी
3- बनवारी दास
इन्होंने तिब्बत रोहेलखण्ड तथा जौनसार क्षेत्र में अधिकार किया माधव सिंह ने महीपति शाह , रानी कर्णावती तथा पृथ्वीपति शाह के समय में सेवा दी। इसने अपने पौथिक गांव में खुले नहरो का निर्माण कराया।
रानी कर्णावती-- महिपतिशाह की पत्नी जो अपने पुत्र पृथ्वीपतिशाह की भू-संरक्षिका के तौर पर गद्दी पर बैठी । मुगल शहजादा दाराशिकोह के पुत्र सुलेमान शिकोह को शरण देने पर 1636ई• में शाहजहां के सेनापति नवाजत खाँ ने आक्रमण कर दिया शाहजहां के सेनापति नवाजत खाँ व सैनिकों के नाक कटवाने के कारण इसे नाककटी रानी कहा जाने लगा।
पृथ्वीपतिशाह-- 7 वर्ष की अल्पायु में गद्दी में बैठा इसके अभिलेख देवप्रयाग व रघुनाथ मन्दिर से प्राप्त हुए। पृथ्वीशाह ने सन 1646 में राजगदी संभाली, उस समय दिल्ली में औरंगजेब अपने पिता शाहजहाँ को तख़्त से उतार,बंदीगृह में डाल कर अपने भाइयों का मारने की फिराक में था। भाइयों को मारकर ही वो तख़्त तक पहुच सकता था क्यूंकि वह सबसे छोटा था। उसका सबसे बड़ा भाई दाराशिकोह और उसके पश्चात उसका पुत्र सुलेमान शिकोह तख़्त के अधिकारी थे। इन्ही से उन्हें बड़ा भय था। उस समय गढ़वाल नरेश पृथ्वीशाह ने सुलेमान शिकोह को राजा जयसिंह के कहने पे पनाह दी। औरंगजेब नेसुलेमान शिकोहको पकड़ने के लिए कई प्रयास किये परन्तु राजा पृथ्वीशाह की शरण में होने की वजह से वह कामयाब नही हो पाया।
राजा फ़तेहशाह--फ़तेहशाह अगले प्रसिद्ध राजा हुए, इन्होनेभंगिनी के युद्ध(18सितम्बर1688) मं। शिवालिक राजाओ की तरफ से गुरु गोविन्द सिंह के विरुद्ध युद्ध लड़ा था।
राजा फतेशशाह -- यह भी अल्पायु में गद्दी पर बैठा इसने अपने दरबार में नवरत्न रखने की प्रथा शुरू की। फतेशशाह ने कर्णानाथ की स्थापना की इसके दरबारी कवि भूषण ने फतेह प्रकाश नामक ग्रंथ की रचना की। फतेशशाह ने सिख गुरू रामराय को देहरादून में 3 गांव दान दिये।
प्रधुम्नशाह-- ये गोरखाओ के आक्रमण के समय गढ़वाल के शासक थे। 14 मई 1804 में देहरादून खुडबुडा के युद्ध में गोरखाओ से वीरगति को प्राप्त हुए। प्रधुम्नशाह के दो पुत्र प्रीतमशाह व सुदर्शनशाह थे। प्रीतमशाह को गोरखों ने बन्दी बनाकर काठमांडू भेज दिया जबकि सुदर्शनशाह ने हरिद्वार में हर्षदेव जोशी की सहायता से अंग्रेजों को आमंत्रित किया।
सुदर्शनशाह-- अक्तूबर 1814 में अंग्रेज गवर्नर वार्ड हेस्टिगज के विरुद्ध अंग्रेजी सेना भेजी व 1815 में गढ़वाल गोरखाओ से आजाद हो गया। अंग्रेजो को लड़ाई का खर्चा न देने के कारण अंग्रेजो ने श्रीनगर पर कब्जा कर लिया। तब सुदर्शनशाह ने अपनी राजधानी श्रीनगर से टिहरी गढ़वाल स्थापित की। 28 अक्तूबर 1815 को सुदर्शनशाह द्वारा टिहरी रियासत की स्थापना की। सुदर्शनशाह ने कवि सूरत के नाम पर सभासार नामक दो ग्रंथों की रचना की।
राजा प्रतापशाह-- राजा प्रतापशाह ने प्रताप नगर बसाया इसके समय में टिहरी में अंग्रेजी शिक्षा आरंभ हुई।
राजा कीर्तिशाह-- इन्हें अंग्रेजों द्वारा The Knight Commander तथा Campanion of. India सी• एस• आई• की उपाधि प्राप्त हुई इसने टिहरी में PWD की स्थापना की। इसने कृषि बैंक की स्थापना की। राजा कीर्ति शाह(1886-1913) श्रीनगर के निकट ने1894 मेंकीर्तिनगरकी स्थापना की
राजा नरेन्द्रशाह-- महाराजा नरेन्द्रशाह(1913 -1946) द्वारा टिहरी राज्य की राजधानी टिहरी से नरेन्द्रनगर स्थानान्तरित करने से नरेन्द्रनगर शहर अस्तित्व में आया, पहले यहओडाथलीनाम से जाना जाता था। यह स्थान शिवालिक पहाड़ियों में आता है। इसके समय में जन आंदोलन की शुरुआत हुई। इन्होने अपने जीते जी अपने पुत्र मानवेन्द्र शाह को राजा नियुक्त कर दिया था।
राजा मानवेन्द्रशाह-- यह अंतिम परमार शासक था 14 जनवरी 1948 को राजतंत्र का तख्ता पलट हुआ जनता ने भागीरथी पुल पर रोककर वापस भेज दिया जनता द्वारा चुनी गई सरकार का गठन हुआ 1 अगस्त 1949 में टिहरी रियासत का विलय भारत में हुआ और उस समय उत्तर प्रदेश का जिला बना
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