Monday, January 21, 2019

  • UK GK BY SANDEEP RAWAT
  • *कुमाऊँ परिषद् की स्थापना कब हुई? –1916 में
  • *.कुमाऊँ में गोरखा शासन कब स्थापित हुआ –1790 में
  • *कुमाऊँ रेजिमेंट का गठन कब किया गया था –1945
  • *कुमाऊँ साहित्य के पहले कवि कौन है –पं. गुमानी पंत
  • *कुमाओं और नेपाल को कोन सी नदी अलग करती है? –काली नदी
  • *केदारनाथ उत्तराखण्ड के किस राष्ट्रीय राजमार्ग में स्थित है –109(रा.रा.माँ.स.)
  • *.केदारनाथ के लिये पवन हंस कंपनी द्वारा हेलिकोप्टर सर्विस कब से प्रारंभ की गयी? –16 मई 2003
  • *.केदारनाथ से रुद्रप्रयाग तक बहने वाली नदी कौन सी है –मंदाकिनी
  • *.कैलाश-मानसरोवर यात्रा प्रायः किस दर्रे से होकर की जाती है? –लिपुलेख
  • *कोटेश्वर बांध एवं जल विद्युत परियोजना कितने मेगावॉट की है? –400मेगावॉट
  • *.कोटेश्वर बांध का निर्माण किस नदी पर किया गया है –भागीरथी नदी
  • *.कोन सी नदी हिमनद से नही निकलती है –कोसी
  • *कोशिकी देवी का मंदिर कहाँ है –अल्मोड़ा
  • *.कौन सा दर्रा उत्तराखंड में है –माना निति लिपुलेख ट्रेल 
  • *क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखण्ड का देश में कौन सा स्थान है ?18 वा
  • *क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा नेशनल पार्क कौन सा है –गंगोत्री नेशनल पार्क
  • *.क्षेत्रीय नेता जिन्होंने प्रथम बार उत्तराखंड राज्य के निर्माण का विचार दिया –बद्री दत्त पांडे
  • *.गंगा का उद्गम है –गंगोत्री से
  • *.गंगा को राष्ट्रीय नदी कब घोषित किया गया? –2008 में
  • *गंगा नदी के तट पर सर्वाधिक पवित्र माने जाने वाला हर की पौड़ी स्थित है –हरिद्वार में
  • *गंगाद्वार के नाम से किस शहर को जाना जाता है –हरिद्वार
  • *.गढ़रत्न सम्मान किस क्षेत्र में दिया जाता है? –पर्यावरण क्षेत्र में
  • *गढ़वाल के लिए ‘केदारखण्ड’ व कुमाऊँ के लिए ‘मानसखण्ड’ शब्द का किस पुराण में उल्लेख है? –स्कन्दपुराण
  • *.गढ़वाल पेंटिंग के लेखक –मुकन्दी लाल
  • *गढ़वाल पेंटिंग बनाने वाले हैं –मौला राम
  • *गढंवाल पेंटिंग्स के लेखक कौन है? श्री मुकन्दी लाल
  • *.गढ़वाल राज्य की नीव डालने वाले प्रथम राजा कोन थे? –अजयपाल
  • *गढ़वाल शैली के प्रसिद्ध चित्रकार मौलाराम किसके पुत्र थे –मंगतराम
  • *गाँधी जी ने कुमाऊँ की यात्रा सर्व प्रथम कब की थी –जून 1929
  • *गाँधी जी ने गढ़वाल क्षेत्र की यात्रा वर्ष की ?16-24 अकटूबर (1929
  • *गुरुकूल कांगड़ी विद्यालय की स्थापना स्वामी श्रद्धानन्द ने हरिद्वार में किस वर्ष की थी? –1902 में
  • *गोपेश्वर जोशीमठ, श्रीनगर उत्तराखण्ड की कौन सी नदी के तट पर स्थित है –अलकनंदा
  • *गोरखों ने कुमाऊँ पर कब अधिकार कर लिया था? –1790 ई. में
  • *गोरखों ने गढ़वाल पर किस वर्ष पूर्ण अधिकार किया? –1804 में
  • *गोविन्द बल्लभ पन्त जी को भारत रत्न किस वर्ष दिया गया? –१९५७
  • *गौचर मेले का आरंभ कब हुआ –1943
  • *.घाघरा नदी का उद्गम स्थल कौन सा है –चुंगु हिमनद
  • *.चिपको आंदोलन का नेतृत्व किन्होंने किया –गौरा देवी
  • *चिपको आन्दोलन के प्रणेता कौन है –सुन्दर लाल बहुगुणा
  • *.चिपको आन्दोलन सर्वप्रथम किस जिले से शुरू हुआ था –चमोली
  • *.चिपको आन्दोलन सर्वप्रथम किस जिले से शुरू हुआ था? –चमोली
  • *जनगणना 2011 के अनुसार उत्तराखंड का लिंगानुपात में देश में स्थान है? –13वाँ
  • *..टिहरी जलाशय (स्वामी रामतीर्थ सागर) का क्षेत्रफल कितना है? –42 वर्ग किमी
  • *.टिहरी डैम विश्व का चौथा सबसे ऊँचा डैम है, इसका एशिया में कौन सा स्थान है? –प्रथम
  • *.टिहरी परियोजना का 1000 मेगावाट का प्रथम चरण कब चालू किया गया? –2006 में
  • *.टिहरी परियोजना में सहयोग हेतु रूस से समझौता कब किया गया? –१९८६
  • *.टिहरी राज्य किस तिथि को उतरप्रदेश में सम्मिलित हुआ –1 अगस्त 1949
  • *.टिहरी रियासत का भारत में विलय कब हुआ? –1949 में
  • *.देश के उच्च न्यायालयों के बीच उत्तराखंड के उच्च न्यायालय का दर्जा है –20वाँ
  • *.देश के किस राज्य मे पहली डीजीपी महिला कौन थी –कंचन चौधरी भट्टाचार्य
  • *देहरादून में आरबीआई की शाखा ​कब स्थापित की गई? –जून 2005 में
  • *.देहरादून से राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत गढ़वाली नामक साप्ताहिक का प्रकाशन कब शुरू हुआ था? –1905 में
  • *नया राज्य ‘उत्तराखण्ड’ कब स्वरूप में आया? –9 नवम्बर, 2000 को
  • *.नर व नारायण पर्वतों के मध्य क्या स्थित है? –बद्रीनाथ
  • *.निम्न में से किन्हें उत्तराखंड का गांधी कहा जाता है –इंद्रमणि बाडोनी
  • *.निम्न में से कौन सी जनजाति उत्तराखंड की जनजाति नहीं है –नागा
  • *.नेपाल नरेश अशोक चल्ल ने उत्तराखंड पर कब आक्रमण कर कुछ पर्वतीय क्षेत्र पर अधिकार कर लिया था? –1191 में
  • *नेशनल एकेडमी आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन कहां स्थित है? –मसूरी में
  • *.नैनीताल की सीमा को कितने जिलों की सीमाएँ छूती हैं –4
  • *.नैनीताल के कालाटुंगी व रामगढ़ क्षेत्र में क्या धातु सर्वाधिक मिलती है? –लोहा
  • *.नैनीताल के संस्थापक हैं –पी. बैरोन
  • *.पिंडार नदी का उद्गम है –पिंडारी ग्लैशियर
  • *पिथौरागढ़ से 165 किमी दूरी पर स्थित पर वह स्थान जहाँ ऊनी वस्तुएँ (शाल, कालीन, कम्बल, पंखी, पश्मीना दुशाले) आदि मिलती हैं? –मुन्स्यारी
  • *पिथौरागढ़ से 165 किमी दूरी पर स्थित पर वह स्थान जहाँ ऊनी वस्तुएँ मिलती हैं –मुन्स्यारी
  • *.पूर्णागिरी मेला उत्तराखण्ड के किस जिले में लगता है –टनकपुर (चम्पावत)
  • *.पृथक राज्य की माँग सर्वप्रथम श्रीनगर (गढ़वाल) में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस वर्ष के अधिवेशन में उठायी गयी? –1938 में
  • *.प्रत्येक वर्ष धानों की रोपाई के समय हिजयात्रा उत्सव कहां मनाया जाता है? –पिथौरागढ़ में
  • *प्रदेश की कौन सी जनजाति दीपावली को शोक के रूप में मनाती है –थारू
  • *.प्रदेश में संस्कृत अकादमी कहाँ स्थित है? –हरिद्वार
  • *प्रसिद्व गौचर मेला कब से प्रारम्भ हुआ था –1943 से
  • *प्राचीन ग्रंथो में केदारनाथ को किस नाम से जाना जाता था ?भृंगतुंग
  • *फूलों की घाटी को यूनेस्को द्वारा कब विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया? –2005 में
  • *बद्रीनाथ कहां स्थित है –चमोली में
  • *बद्रीनाथ कहां स्थित है? –चमोली में
  • *बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट एण्ड स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग सेंटर स्थित है –रुड़की में
  • *.ब्रह्म कमल उत्तराखण्ड में हिमालय की पहाड़ियों में कितने फुट उच्चाई पर मिलते है ?12-15 हजार फुट ऊंचाई
  • *ब्रिटिश उत्तरांचल को संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध का अंग कब बनाया गया था ?वर्ष 1912
  • *.भागीरथी एवं मन्दाकिनी नदियों का संगम होता है –देवप्रयाग में
  • *.भारत का प्रथम रास्टीय पार्क कौन सा है – जिम कार्बेट रास्टीय पार्क
  • *.भारत के स्वतंत्र होने के समय गढ़वाल का राजा कोन था? –मानवेंद्रशाह
  • *.भूकंप को दृष्टिगत रखते हुए उत्तराखंड को किस जोन में रखा गया है –जोन 4 तथा 5
  • *.मधुमिता बिष्ट किस खेल से सम्बन्धित है –बेडमिन्टन
  • *.मलिक्कार्जुन मंदिर उत्तराखण्ड के किस राज्य में स्थित है –धारचूला
  • *.महात्मागांधी ने राज्य के किस स्थान को 'भारत का स्विट्जरलैण्ड' कहा था? –अल्मोड़ा (कोसानी)
  • *.मांकदपुर नामक एक गाँव आर्गेनिक खेती करने के कारण आर्गेनिक गाँव बन गया है। यह गाँव किस राज्य में स्थित है -उत्तराखण्ड
  • *मायावती आश्रम उत्तराखण्ड के किस जिले में स्थित है –लोहाघाट (चम्पावत)
  • *.मोनाल पक्षी किस ऊँचाई तक मिलती हैं? –8000-20000 फीट
  • *.रज्जत कितने वर्षों के अन्तराल में मनाया जाता है –12 years
  • *राज्य की कितनी जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है? –65
  • *.राज्य की सर्वाधिक ऊँचाई वाली अधिकांश पर्वत चोटियां कहां स्थित है?–चमोली में
  • *राज्य की सर्वाधिक ऊँची पर्वत चोटी नंदादेवी है, इसकी ऊँचाई कितनी है? –7817 मीटर
  • *.राज्य के किस जिले के दर्रो से तिब्बत नेपाल के बीच व्यापार होता है? –पिथौरागढ़
  • *.राज्य के चारों धामों में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित कौन-सा धाम हैं? –केदारनाथ
  • *राज्य के ज्यादातर पर्यटन केन्द्र कहां पर स्थित हैं? –वाहृद हिमालय
  • *.राज्य में 2004 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की स्थापना कहा की गयी थी ?ऋषिकेश
  • *.राज्य में कागज का सबसे बड़ा कारखाना कहाँ स्थित है? –लालकुंआ में
  • *राज्य में खन नीति की घोषणा कब की गई? –2001 में
  • *राज्य में नई औद्योगिक नीति की घोषणा कब की गई? –मार्च 2003 में
  • *.राज्य में नई कृषि नीति जारी किस वर्ष जारी की गई? –2011 में
  • *.राज्य में बेलीडान की खेती कुमाऊँ क्षेत्र में कब शुरू की गई थी ?1903 में
  • *.राज्य में सर्वप्रथम किस औषधीय पौधे की खेती शुरू की गई थी? –बैलाडोना
  • *.राज्य में सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि है? –ऊधम सिंह नगर में
  • *राज्य में सर्वाधिक संगमरमर भण्डार वाला जिला कौन-सा है? –देहरादून
  • *.राज्य में सर्वाधिक सघन वन कहां मिलते हैं? –नैनीताल में
  • *.राज्य मै दुध व दुग्ध उत्पादों को किस नाम से बेचा जाता है – ‘आंचल केब्राण्ड नाम से’
  • *.राज्य सरकार द्धारा राज्य प्रतीक चिन्हों का निर्धारण किस वर्ष किया गया ?2001
  • *राज्य सरकार ने औद्योगिक विकास को गति प्रदान करने के लिए किस वर्ष तक के लिए विजन प्लान तैयार किया है? –2020 तक
  • *.रामगंगा नदी की कुल लम्बाई कितनी है ?600 किमी
  • *राष्ट्रकवि सुमित्रानंदन पंत का निवासस्थान है –कौसानी
  • *.लाल बहादुर शास्त्री अकादमी कहाँ स्थित है –मसूरी
  • *लिपूलेख दर्रा उत्तराखण्ड में कहा स्थित है –पिथोरागढ़
  • *.वन अनुसंधान संस्थान कहाँ स्थित है? –देहरादून में
  • *.वशिष्ट गुफा स्थित है –टिहरी
  • *.वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ देहरादून 
  • *.'विंटर लाइन' नामक प्राकृतिक घटना किस माह में होती हैं? –दिसम्बर-जनवरी में
  • *.विशिष्ट गुफा उत्तराखण्ड के किस जिले में स्थित है –टिहरी गढवाल
  • *विश्वस्तरीय पशु चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान कहाँ अवस्थित है? –मुक्तेश्वर में
  • *विस्सू, पांचोई और दियाई उत्सव किस जनजाति द्वारा मनाए जाते हैं –जौनसारी
  • *.शंकराचार्य के हिन्दू धर्म की पुनस्थापना किस स्थान पर की थी –बद्रीनाथ
  • *.सरला बहन का मूल नाम क्या था –केथरीन हेलीमन
  • *.सर्वाधिक बाघ किस राष्ट्रीय उद्यान में पाये जाते हैं? –कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान
  • *.सर्वाधिक महिला साक्षरता वाला (जिला जनगणना 2011) कौन-सा है? –देहरादून
  • *.साक्षरता की दृष्टि से उत्तराखण्ड का देश में कौन सा स्थान है ?17 वा
  • *सिल्वर फर, ब्लू पाइन, स्प्रूस, देवदार, बर्च आदि के वृक्ष किस प्रकार के वनों में पाये जाते हैं? –उप-एल्पाइन तथा एल्पाइन वन
  • *सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट कहाँ स्थित है –रुड़की
  • *.सेराघाट परियोजना –सरयू नदी
  • *स्कन्द पुराण में गढवाल के लिए प्रयुक्त क्या नाम है –केदारखण्ड
  • *स्वतंत्रता आन्दोलन में सल्ट की भूमिका की सराहना करते हुए किसने इसे'कुमाऊँ का बारदोली' कहा था? –महात्मा गांधी ने
  • *.हजरत अलाऊद्धीन अहमद साबिर की दरगाँह कहाँ स्थित है –पिरान कलियर ( रुढ़की )
  • *.हरिद्वार को किस नाम से जाना जाता है –कुंभ नगरी
  • *.हिलांस पुस्तक के  लेखक –भगवती चरण निर्मोही
  • *.हेमवंती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा कब प्राप्त हुआ? –15 जनवरी 2009
  • *.उत्तराखंड के प्रथम कमिश्नर –गार्डनर
  • *.गंगा मैदानी क्षेत्र में किस स्थान से प्रवेश करती है –हरिद्वार

  • SANDEEP RAWAT UTTRAKHAND GK 9927050303

Sunday, January 20, 2019

                
                 उत्तरखण्ड मेले मुख्य-

UK GK BY SANDEEP RAWAT

1-प्रसिद्ध चैती मेला लगता है- काशीपुर में
2-कसार देवी मेला कहा आयोजित होता है - अल्मोड़ा में
3-कौन सा त्यौहार थारु स्त्रियों का सर्वाधिक लोकप्रिय नृत्य है- बाझर 
4-गैंद मेला किस स्थान पर लगता है - गढ़वाल में
5-चकराता में हनोल मेला किस माह आयोजित होता है - अक्टूबर में
6-कौन सा मेला राज्य में बोक्सा जनजाति के लिए मुख्य है - बाला सुंदरी देवी का मेल
7-किस त्यौहार में शंकर - पार्वती की पूजा की जाती है - आड़ू त्योंहार में
8-चैतोल का त्यौहार कब मनाया जाता है - हर दूसरे-तीसरे वर्ष
9-उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों में उत्तरायणी मेला कब मनाया जाता है - 14 जनवरी को
10-अनंत चौदस पर्व में किस देव की पूजा की जाती है - शिव भगवान की
11-किस पर्व को बग्वाल भी कहा जाता हे - दिपावली को
12-नंदा देवी राजजात यात्रा कितने वर्षो के अंतराल में आयोजित होती है- 12 वर्षो में
13-नंदा देवी राजजात में कांसुआ से हेमकुंड की दूरी तय की जाती है- 280 किमी
14-काली और गोरी नदी के संगम पर कौन सा मेला आयोजित होता है- जौलजीवी मेला
15-खतडुवा त्यौहार कब मनाया जाता है - 17 सितम्बर
16-दून गिरी का मेला कहाँ आयोजित होता है - रानीखेत में
17-उत्तराखंड में मेले को कहा जाता है -कौथिक
18-उत्तराखंड में भुनेश्वरी मेला आयोजित होता है - अल्मोड़ा में
19-मनेश्वर का मेला कहा आयोजित होता है - चम्पावत
20-अनसूया देवी मेला आयोजित होता है - चमोली गोपेश्वर
21- दनगल मेला -पौड़ी
22-गिंदी या गिर मेला- पौड़ी
23-बिस्सू मेला -उत्तरकाशी
उत्तराखण्ड
SANDEEP RAWAT
1. राष्ट्रीय उच्च मार्ग की कितनी लम्बाई है – 1375किमी
2. राजकीय उच्च मार्ग की कितनी लम्बाई है – 1576किमी
3. प्रमुख जिला सडको की कितनी लम्बाई है – 568किमी
4. अन्य जिला सडको की कितनी लम्बाई है – 6827किमी
5. ग्रामीण सडको की कितनी लम्बाई है – 12,375किमी
6. न्यूनतम भारित वाहन सडको की कितनी लम्बाई है – 1100किमी
7. उतराखण्ड के किस स्थल पर पैराग्लाईडिंग खेल होता है – गोपेश्वर,धारचूला,पिथोरागढ़
8. राज्य के किस स्थल पर आईस नाम का खेल होता है – मिलम,ओली,बद्रीनाथ,उत्तरकाशी
9. उतराखण्ड के किस स्थल पर आईस स्केटिंग खेल होता है – रानीखेत, मिलम,ओली,मसूरी
10. राज्य के किस स्थल पर राँक ग्लाईडिंग खेल होता है – नेनीताल,पैाढ़ी,श्रीनगर
11. राज्य के किस स्थल पर ट्रेकिंग होता है – बद्रीनाथ, नेनीताल,दून घाटी
12. उतराखण्ड के किस स्थल पर तेराकी खेल होता है – सम्पूर्ण उतराखण्ड मे
13. राज्य के किस स्थल पर रिवर राफ्टिंग खेल होता है – सम्पूर्ण उतराखण्ड की नदियों मे
14. राज्य मे शिल्पि जाति जैसे कपड़ा बनाने वाले की जाति का क्या नाम है – कोली
15. राज्य मे शिल्पि जाति जैसे रेशम का कार्य करने वाले की जाति का क्या नाम है – पटवा
16. राज्य मे शिल्पि जाति जैसे रुई धुनने वाले की जाति का क्या नाम है – धुना
17. उतराखण्ड मे शिल्पि जाति जैसे दज्री वाले की जाति का क्या नाम है – ओजी
18. राज्य मे शिल्पि जाति जैसे टोकरी बनाने वाले की जाति का क्या नाम है – बैडी
19. राज्य मे शिल्पि जाति जैसे रिंगाल का काम वाले की जाति का क्या नाम है – रूडीया
20. उतराखण्ड मे शिल्पि जाति जैसे शस्त्र बनाने वाले की जाति का क्या नाम है – तिरुआ
21. राज्य मे शिल्पि जाति जैसे कुम्हार बनाने वाले की जाति का क्या नाम है – पंजे
22. उतराखण्ड मे शिल्पि जाति जैसे राजमिस्त्री की जाति का क्या नाम है – ओंड़
23. राज्य मे शिल्पि जाति जैसे त़ांबे का बर्तन बनाने वाले की जाति का क्या नाम है – टम्टा
24. उतराखण्ड मे शिल्पि जाति जैसे घोड़े देखने वाले की जाति का क्या नाम है – वखरिया
25. उतराखण्ड के निर्धन एवं पिछड़ेपन का दायित्व स्वीकार करने वाले प्रथम राजनेता कौन है – श्रीमती इंदिरा गाँधी
26. भारतीय सैन्य अकादमी कहाँ है – देहरादून मे
27. उतराखण्ड मे किस नगर मे राज्य वन सेना का महाविद्यालय कहाँ है – देहरादून मे
28. चिपको आन्दोलन किससे सम्बंधित है – वन संरक्षण
29. उतराखण्ड मे किस नगर मे सर्वाधिक जनजातिया पायी जाती है – नैनीताल
30. उतराखण्ड मे वन क्षेत्र कितने प्रतिशत है – 79%
31. उतराखण्ड मे विशिष्ट पहचान क्या है – नैसर्गिक सैान्द्र्य
32. उतराखण्ड के अतीत के गोरवो मे से एक चन्द्रसिंह गढ़वाली थे – स्वतंत्रता सेनानी
33. उतराखण्ड की आय का मुख्य स्रोत क्या है – वनसम्पदा व पर्यटन
34. विश्व-विख्यात फूलो की घाटी कहाँ है – चमोली मे
35. जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा जिला कौन सा है – हरिद्वार
36. राज्य मे गढ़ केसरी किसे कहा जाता है – अनुसुया प्रसाद बहुगुणा को
37. राज्य मे कुमाऊँ केसरी किसे कहा जाता है – ब्रदीदत्त पांडेय को
38. केदारनाथ किसका मंदिर है – शिव
तपोवन उत्तराखंड मे कहाँ है – ॠषिकेष
39. चाइना पीक कहाँ है – नैानिताल
40. भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स कहाँ है – हरिद्वार
41. भोटिया कहाँ की जनजाति है – उतराखण्ड
42. चाँचरी क्या है – न्रत्य
उतराखण्ड मे कितने विकास प्राधिकरण है – पांच
43. उतराखण्ड मे कितने प्रकार के वन पाये जाते है – चार प्रकार के
44. नदी वेदिकाओ पर कौनसा नगर है - श्रीनगर
45. उतराखण्ड मे कितनी तहसील है – 78
46. कण्वाश्रम कहाँ है – गढ़वाल
46. उतराखण्ड मे कितने प्रकार के नदी समूह पाये जाते है – तीन प्रकार
47. अर्द्धकुम्भ का मेला उतराखण्ड मे कहाँ लगता है – हरिद्वार
48. उतराखण्ड पहले किस नाम से जाना जाता है – उत्तरांचल
49. उतराखण्ड मे सर्वाधिक चावल कहाँ पैदा होता है – देहरादून
50. उतराखण्ड मे तांबा कहाँ होता है – अल्मोड़ा
51. राज्य मे छोटा कश्मीर कहाँ जाता है – पिथोरागढ़
52. नैनीताल की खोज किसने की है – बैरो
53. राज्य के सभी उद्योग केवल पांच जिलो मे है – ऊ.सि.नगर,हरिद्वार,देहरादून,नैनीताल ,पोढ़ी
54. राज्य की सबसे बड़ी व्यापारिक मंडी – हल्द्वानी
55. राज्य का सबसे कम क्षेत्रफल वाला ओध्योगिक आसंस्थान – फार्मासिटी, सेलाकुई
56. सर्वाधिक उघौग की स्थापना वाला औघोगिक आसंस्थान – एकीकृत औ. सं ऊ.सि.नगर,हरिद्वार,देहरादून,नैनीताल ,पोढ़ी
57. राज्य की सबसे बड़ी व्यापारिक मंडी – हल्द्वानी
58. राज्य का सबसे कम क्षेत्रफल वाला ओध्योगिक आसंस्थान – फार्मासिटी, सेलाकुई
59. सर्वाधिक उघौग की स्थापना वाला औघोगिक आसंस्थान – एकीकृत औ.आ.हरिद्वार
60. राज्य के पारम्परिक उघौग – फर्नीचर, चीनी , कागज ,सीमेंट
61. कत्त्था उघौग कहाँ होता है – हल्द्वानी
62. कागज उघोग कहाँ होता है – हरिद्वार, देहरादून,नैनीताल
63. हिंदुस्तान मशीन टूल्स कहाँ है – रानीबाग,भीमताल, नैनीताल
64. इलेक्ट्रिकल्स व टेलीफोन कहाँ है – भीमताल, नैनीताल
65. भारत इलेक्ट्रोनिकस कहाँ है – कोटद्वार
66. इलेक्ट्रोनिक उघोग कहाँ है – लैंसड़ोन
67. आँप्टो इलेक्ट्रोनिक कहाँ है – रायपुर , देहरादून
68. ओरडीनेन्स फेक्टरी कहाँ है – रायपुर , देहरादून
69. डील कहाँ है – रायपुर, देहरादून
70. फल संरक्षण का केन्द्र कहाँ है – रामगढ़
71. राज्य गठन के समय सडको की कुल लम्बाई – लगभग 10हजार किलोमीटर
72. हरिद्वार कहाँ है – रा.रा.मा.सं. 58 व 74 के संगम पर है
73. गंगोत्री कहाँ है – रा.रा.मा.सं. 108 के संगम पर है
74. यमनोत्री कहाँ है – रा.रा.मा.सं.94 के संगम पर है
75. ॠषिकेष कहाँ है – रा.रा.मा.सं. 58 के संगम पर है
76. केदारनाथ कहाँ है – रा.रा.मा.सं. 109 के संगम पर है
77. राज्य मे कुल रेलपथ – 91किमी
78. रेलपथ वाले जिले है – हरिद्वार, देहरादून , नैनीताल ,चंपावत
79. रेलपथ की सर्वाधिक लम्बाई – हरिद्वार
80. राज्य मे प्रथम रेलपथ बिछाया गया है – 1884 मे,रामपुर से काठगोदाम तक
81. लक्सर से जक्शन से हरिद्वार को जोड़ा गया है – 1896 मे
82. लक्सर से हरिद्वार से देहरादून को जोड़ा गया है – 1900 मे
83. सुचना आयोग का प्रथम गठन कब हुआ था – 3अक्टूबर,2005 को
84. डाँ.पीताम्बर दत्त बडथ्वाल हिन्दी अकादमी कहाँ है – देहरादून
85. उत्तराखंड भाषा संस्थान कहाँ है – देहरादून
86. उत्तराखंड सेवा निधि व पर्यावरण शिक्षा संस्थान कहाँ है – अल्मोड़ा
87. उत्तराखंड ग्राम्य विकास संस्थान कहाँ है – रुद्रपुर
88. वन व पंचायत प्रशिक्षण संस्थान कहाँ है – हल्द्वानी
89. वानिकी प्रशिक्षण संस्थान कहाँ है – हल्द्वानी , नैनीताल
90. नेहरु पर्वतरोहण संस्थान कहाँ है – उत्तरकाशी
91. जी.बी.पंत हिमालयी पर्यावरण व विकास संस्थान कहाँ है – कटारमल,अल्मोड़ा
92. सेन्ट्रल हिमालयन एनवायरमेंट एशोसिएशंन कहाँ है – नैनीताल
93. राष्ट्रीय पादप व जैविकी अनुसंधान ब्यूरो –निगलाठ, नैनीताल
94. उच्च स्थलीय पौध शोध संस्थान कहाँ है – श्रीनगर
95. ओेषधीयी व सुगंधित पौध संस्थान कहाँ है – पंतनगर
96. ओेषधीयी व सुगंधित पौध संस्थान कहाँ है – बैजनाथ
97. भारतीय पशु चिकित्सा शोध संस्थान कहाँ है – मुक्तेश्वर, नैनीताल
98. वैक्सीन रिसचृ शोध संस्थान कहाँ है – पटवाडांगर , नैनीताल
99. राजकीय आयुर्वेद औषधी निर्माणशाला कहाँ है – ॠषिकुल,हरिद्वार
100. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान कहाँ है – देहरादून
101. भारतीय खान ब्यूरो कहाँ है – देहरादून
102. भारतीय सुदुर सवेंदन संस्थान कहाँ है – देहरादून
103. भारतीय वन अनुसंन्धान कहाँ है – देहरादून
104. फारेस्ट ट्रेनिंग स्कूल – देहरादून
105. आपदां न्यूनीकरण व प्रबंधन केन्द्र कहाँ है – देहरादून
106. टरार अनुसंन्धान केन्द्र कहाँ है – भीमताल
107. गन्ना विकास संस्थान कहाँ है – काशीपुर
108. कुमाऊँ मंडल विकास निगम – नैनीताल
गढ़वाल मंडल विकास निगम – पोढ़ी
109. सुचना प्रोघोगीकी पार्क – देहरादून व पंतनगर
110. जैव प्रोघोगीकी का पार्क – पंतनगर
111. उत्तराखंड जल विधुत निगम संस्थान कहाँ है – देहरादून
112. राष्ट्रीय लगु उद्योगों विकास निगम – ऊधम सिंह नगर
113. राजकीय विधि कालेज कहाँ है – गोपेश्वर, चमोली
114. भारत का सर्वाधिक खेल मैदानो वाला कैम्पस – राँयल इंडियन मिलिट्री कालेज,देहरादून
                             चंद राज्यवंश
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चंद राज्यवंश संथापक – सोमचंद
राज्य चिन्ह – गाय
अंतिम राजा – महेन्द्रचंद
राजा सोमचंद -: चन्द राजवंश के मूल पुरुष सोमचन्द इलाहाबाद के निकट फूलपुर के निकट झूसी नामक स्थान से इस क्षेत्र में आए। कत्यूरी राजवंश के अन्तिय शासक ब्रह्रमदेव ने अपनी पुत्री का विवाह सोमचन्द के साथ करवाया और सोमचन्द ने लगभग 1027 ई• मे चन्द राजवंश की स्थापना की। कत्यूरियों के पतन के साथ कुमाऊ में चंद वंश का उदय हुआ। सोमचन्द ने डोटी शासकों के अधीन उनकी कुलदेवी के नाम चम्पावत (चरमावती) नगर की स्थापना की तथा अपनी राजधानी बनायीं। प्रराभ्म में इस राज्य में केवल राजधानी चंपावत के आस पास का ही छेत्र सम्मिलित था, लेकिन बाद में अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल तथा नेपाल के भी कुछ छेत्र पर इनका अधिकार हुआ। सोमचन्द ने प्रारंभ में चार किलेदारो की नियुक्ति की जो क्रमशः इस प्रकार है 
1- कार्की
2- बोहरा
 
3- तड़ागी
 
4-चौधरी
 
इन्हें चार आल्य चराल कहा गया। सोमचन्द गोरखा राजा जयदेव मल्ल को कर देते थे इन गोरखा राजाओं को रैका कहा जाता था। कुमाऊ में ऐपड़ कला तथा पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत सोमचन्द द्वारा की गयी। सोमचन्द ने राजबुंगा किले का निर्माण किया
 
Note-: 1191 ई• का गोपेश्वर त्रिशूल तथा 1223 ई• के बालेश्वर मन्दिर का लेख से कुमाऊ क्षेत्र में डोटी शासकों के शासन का उल्लेख मिलता है

राजा इन्द्रचंद -: राजा इन्द्रचंद ने 20 वर्ष तक राज किया। “यह राजा बड़ा घमंडी बताया जाता है। अपने को इंद्र के समान समझता था”। इस राजा ने अपने यहाँ रेशम का कारोबार खोला। रेशम के कीड़ों के 7 वीं सदी में तिब्बत-राज्य में स्त्रोंगजांग गांपो की रानी लाई, और उसकी नेपाली रानी ने इसका प्रचार नेपाल तक किया। वहाँ से यह कुमाऊ में लाया गया। यह कारोबार गोरख्याली राज्य तक बराबर चलता रहा। ‘गोर्ख्योल’ में यह उत्तम कारोबार नष्ट हो गया। रेशम के कीड़ों के चारे के वास्ते शहतूत(कीमू) के पेड़ बहुत बोये गये।

राजा थोहर चन्द -: राजा थोहर चन्द लगभग 1261 ई• में गद्दी पर बैठा इसने चन्द वंश की पुनः स्थापना की।
                                                                                                            
राजा ज्ञानचंद उर्फ़ गरुड़ ज्ञान चंद -: राज्याधिकार पाने पर राजा ज्ञानचंद ने सबसे पहला काम जो किया, वह दिल्ली नरेश के पास जाने का था। राजा ज्ञानचंद ने दिल्ली के बादशाह फिरोज तुगलक के यहाँ चिट्टी भेजी कि तराई-भावर प्रान्त मुद्दत से कुमाऊ राज्य का हिस्सा रहा है। पहले कत्यूरियों के हाथ में था, अब चंद राजाओं के अधिकार में होना चहिये। 1365-1420 के मध्य यह पहला चन्द राजा था जिसने फिरोज तुगलक के दरवार में भेट चढाई बादशाह मुह्हमद फिरोज तुगलक उस समय शिकार पर थे। राजा ज्ञानचंद भी वहाँ चले गये। वहाँ उन्होंने तीर कमान से उड़ते हुए गरुड़ को मार डाला, जो एक सर्प को पकड़कर ले जा रहा था। बादशाह फिरोज तुगलक राजा ज्ञानचंद साहब के कौशल से खुश हो गये। साथ ही उनको ‘गरुड़’ की उपाधि से विभूषित किया। तब से यह राजा गरुड़ज्ञान चंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। उसी समय फरमान लिखा कि तराई-भावर का इलाका भागीरथी गंगा तक कुमाऊ के राजा के अधिकार में रहेगा। इनके शाशन काल में बहुत मार- काट हुई। नीलू कठायत नामक सेनापति राजा गरुड़ज्ञानचंद के दरबार में था। यह पहला चन्द शासक था जिसने सौर क्षेत्र पिथौरागढ में अधिकार किया सेरा खड़कोट ताम्रपत्र लेख नेपाली शासक विजय बम तथा इसके मध्य सन्धि का उल्लेख मिलता है।

राजा उद्यान चंद -: राजा उद्यानचंद ने चंपावत में बालेश्वर मंदिर का निर्माण कराया, यह गरुड़ज्ञानचंद के पौत्र थे। इनके राज्य का विस्तार इनकी मृत्यु के समय था - उत्तर में सरयू से लेकर, दक्षिण में तराई तक, पूर्व में काली से लेकर, पश्चिम में कोसी व् सूँवाल तक। बालेश्वर मंदिर के वास्तुकार जगन्नाथ मिस्त्री थे । जगन्नाथ मिस्त्री ने ही एक हथिया नौले का निर्माण किया

राजा विक्रम चन्द -: राजा विक्रम चन्द का बालेश्वर मंदिर ताम्र लेख से प्राप्त होता है जिसमें उनके लेखक गु्ंज शर्मा वर्णित है
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भारती चन्द -: भारती चन्द यह पहला चन्द शासक था जिसने डोटी शासकों से निजात दिलायी इसने सौर (पिथौरागढ) सिरा (डीडीहाट) तक चन्द का अधिकार स्थापित किया। राजा रत्न चंद -: चंदो में सबसे पहला भूमि बंदोबस्त राजा रत्नचंद ने ही कराया था। इन्होने 27 वर्ष तक शाशन किया और 1488 में स्वर्ग को सिधारे।

राजा भीष्मचंद -: राजा भीष्मचंद 1555 में गद्दी पर बैठे, इनकी कोई संतान न थी। इन्होने राजा ताराचंद के पुत्र कल्याणसिंह को गोद लिया था। राजा भीष्मचंद ने राजधानी चम्पावत से हटाकर किसी केंद्र के स्थान में रखने की सोची। तब राजा ने अल्मोड़ा खगमरा के किले का जीर्णोधार कर उसे राजधानी स्थापित करने का इरादा किया और वहाँ अल्मोड़ा में आलमनगर की नीव भी डाली और आलमनगर बसाया। इसने अल्मोड़ा स्थित खगमरा कोट के किले का (1555-1560) निर्माण कराया। खस जाति श्रीगजुवाठिंगा नामक एक सरदार ने सेना एकत्र कर, खगमरा कोट के किले पर चढाई कर दी। जब राजा भीष्मचंद किले में सो रहे थे तो खस राजा ने चुपके से वहाँ जाकर राजा भीष्मचंद का सिर काट दिया और उसके बहुत से साथियों को मौत के घाट उतार दिया। श्रीगजुवाठिंगा ने खुद को बारामण्डल का राजा बना दिया पर उसकी यह स्वतंत्रा ज्यादा दिन न चली। ज्यों ही यह खबर कल्याणचंद तक पहुची उसने अपने पिता की मृत्यु का जोरदार बदला लिया और सबको क़त्ल किया।
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राजा बालो कल्याणचंद -: राजा बालो कल्याणचंद ने सन 1563 में अल्मोड़ा नगर बसाया और यहाँ चंद राजाओं की राजधानी स्थापित की। कहते है “अल्मोड़ा घास ले जानेवाली अल्मोडियों से अल्मोड़ा नाम पड़ा”। पहले इसे आलमनगर नाम दिया गया, नाम आलमनगर तो चला नहीं, अल्मोड़ा ही चल पड़ा। इसके अलावा इसे राजापुर नाम से भी जाना जाता था। राजा बालो कल्याणचंद ने 1563 में लालमंडी किला बनवाया इसे फोर्ट मोयरा भी कहा जाता है। यह पहला चन्द राजा था जिसने गंगोलीहाट पर अधिकार किया था।

राजा रुद्र्चंद -: राजा रुद्र्चंद 1565 में गद्दी पर बैठे तब वह बहुत ही छोटे थे। हुस्सैनखां टुकुडिया नामक दिल्ली के एक सूबेदार ने तराई- भावर छेत्र पर कब्ज़ा किया। इसने पर्वतीय छेत्र में भी लूटपाट मचाई(दो बार) मंदिर तोड़े, व् लूट मचाई पर इसकी फौज बरसात के मौसम की वजह से पहाड़ों में टिक न पाई। इसकी मृत्यु के बाद राजा रुद्र्चंद ने फौज एकत्रित कर तराई पर फिर से अधिकार किया। जब इसकी शिकायत दिल्ली पहुची तो दिल्ली से नवाब कटघर बड़ी सेना लेकर चढ़ आये, उस फौज के सामने राजा की फौज कुछ भी न थी। राजा ने यह पेशकश कि की सारी फौज न लड़कर दोनों तरफ से एक-एक योद्धा भेजें जिनमे लड़ाई हो, और जो जीते भावर – तराई का छेत्र उसका। राजा अपनी तरफ से स्वंय गये और विजयी भी रहे। इस तरह का युद्ध इकफा कहा जाता था। राजा रुद्र्चंद की बहादुरी की खबर सुनकर अकबर ने उन्हें लाहौर बुलाया और वहाँ नागौर की लड़ाई में भेजा। उस युद्ध में राजा व् कुमाउनी सेना ने बड़ी बहादुरी दिखाई, जिससे प्रसन्न होकर अकबर ने राजा रुद्र्चंद को चौरासी माल का फरमान दिया और खिल्लत भी दी। चौरासी माल तराई- भावर को कहते है, यह 84 कोस का टुकड़ा था। राजा रुद्र्चंद को दरबार में आने से बरी भी कर दिया। राजा रुद्र्चंद ने रुद्रपुर नामक शहर बसाया, वहाँ महल व् किला भी बनवाया, तराई – भावर में निरंतर उपद्रव होते रहते थे, किन्तु सबसे प्रथम राजा रुद्र्चंद ने इसका पक्का इन्तेजाम किया। दिल्ली से अल्मोड़ा लौटने पर राजा ने मल्ला महल का निर्माण कराया। इस समय वहां कचहरी व् खजाना है। राजा के दो कुंवर थे, जिनमे से बड़े जन्म से अंधे कुँ. शक्ति सिंह गोसाई थे। दुसरे बेटे कुँ. लक्ष्मीचंद कहते है, यह शक्ति थी की अपने सामने आदमी खड़ा करना, फिर उस आदमी के बोलने पर यह जान लेना कि अपने और उस आदमी के बीच कितना अंतर है। इसी तरह शक्ति सिंह गोसाई ने, कहते है, तमाम जिले की नाप की थी, और बंदोबस्ती शब्द जो कागजातों में आये है जैसे कि, बेलका, नाली, काछ, रत्ती, यासा, पैसा, बीसी, ज्युला सब नाम उन्ही के चलाए है। कहते है की आँखे खुल जाने के लिए गोंसाईजी ने ज्वालामुखी मंदिर में तपस्या की थी पर आँखे तो न खुली, पर जमीन की नाप तथा अन्य राज्य प्रबन्ध का ज्ञान उन्हें काफी हो गया था। राजा रुद्र्चंद ने धर्म निर्णय पुस्तक तथा उषा रुद्र गोदया नामक पुस्तकों की रचना की।
राजा लक्ष्मीचंद -: मूनाकोट ताम्रलेख में इसे लक्ष्मण चन्द जबकि मानोदय पुस्तक में इसे लक्ष्मी चन्द कहा गया। राजा रुद्र्चंद के बाद लक्ष्मीचंद गद्दी पर बैठे, शक्ति सिंह गुसाईं बड़े होने के नाते राजा के उत्तराधिकारी थे। किन्तु अंधे होने की वजह से शक्ति गुसाईं ने अपने छोटे भाई लक्ष्मीचंद के लिए राज गद्दी छोड़ दी। अंधे होने पर भी शक्ति सिंह गुसाईं को ज्ञान बहुत था विशेषकर नाप का। अतः राजा लक्ष्मीचंद ने उनको मुल्क व् दरबार का इंतज़ाम करने को कहा। शक्ति गुसाईं ने जमीन की नाप का दफ्तर जमीन के ऊपर ‘रकम’ (कर) लगाई। ज्युला, सिरती, बैरक, रक्षया, कूत, भात, वगैरह करों का नाम रखा। यह पहला शासक था जिसने दारमा घाटी के शकों पर अधिकार किया। सिपाहियों को कटक यानी फौज में भर्ती करते समय उनकी परीक्षा लेने का प्रबंध भी किया गया। वीर सैनिक तथा बूढ़े सिपाहियों को जमीने व् जागीर दी गई। इसने अपने राज्य कर्मचारियों को तीन भागों में बांटा
1- सरदार - परगने का अधिकारी
2- फौजदार - सैन्य अधिकारी
3- नेगी- सहयोगी कर्मचारी


राजा लक्ष्मीचंद ने अल्मोड़ा में महादेव का मंदिर बनाया, महादेव का नाम लक्ष्मीश्वर रखा। राजा लक्ष्मीचंद ने बागेश्वर में बागनाथ मन्दिर का निर्माण कराया इसने न्यूवाली व ब्रिस्ताली (सैन्य) अदालतें बनायी न्यूवाली के अन्तर्गत आम लोगों का न्यायिक कार्यवाही ब्रिस्ताली के अन्तर्गत सैनिक न्यायिक कार्य राजा लक्ष्मीचंद ने साथ बार गढ़वाल पे चढाई की, और साथ बार यह हारे। इस कारण लोगों ने जिसे किले से राजा लड़ते थे उसका नाम ‘स्यालबूंगा’ रखा। आठवी बार भी बागेश्वर में देवी- देवताओं की पूजा कर गढ़वाल पे आक्रमण किया, राजा की कुछ महत्वपूर्ण विजय तो नहीं हुई, किन्तु इस बार वह लूट-खटोसकर कुछ धन एकत्र किया। इससे खुस होकर राजा अल्मोड़ा लौटे। पंडित रुद्रदत्त पंतजी लिखते है “इस राजा ने गढ़वाल को सर करने की खबर अल्मोड़ा पहुचाने के लिए पहाड़ों की चोटी पर सुखी घास व् लकड़ियाँ के ढेर लगाये कि जिस समय गढ़वाल का प्रदेश जीत लिया जाएगा, उन ढेरों में आग लगाई जाए, ताकि खबर अल्मोड़ा जल्द पहुच सकें”। जीत के समय ऐसा ही किया गया। तब से अश्विन की सक्रांति के दिन सांयकाल के समय घास का आदमी सा बनाकर उसमे फूल-कांस इत्यादि लगाकर लड़के जलाते है। गाते, नाचते, व् कूदते है - “भैलो जी भैलो , भैलो खतडवा” गैद्दा की जीत, खतड की हर ; गैद्दा पडों श्योल, खतड पड़ा भ्योल। यह उत्सव खतडवा कहलाता है। गैद्दा कुँमौन के राजा के सेनापति थे, खतडसिंह कहा जाता है गढ़वाल के सेनापति थे। वह युद्ध में मारे गये। राजा रुद्र्चंद व् लक्ष्मीचंद के समय कोई भारी विजय तो नहीं बस कुछ एक सरहदी लडाइयों में विजय प्राप्त हुई। राजा लक्ष्मीचंद जहाँगीर के दरबार में भी गये थे।

राजा बाजबहादुरचंद -: बाजबहादुरचंद चन्दवंश का सबसे शक्तिशाली राजा था। 1638 में गद्दी पर बैठे, यह बाजचंद या बाजाचंद के नाम से भी जाने जाते है। उस समय भावर-तराई का इलाका फल-फूल रहा था, वहां सालाना 9 लाख तक की आमदनी हो रही थी। लक्ष्मीचंद और बाजचंद के मध्य राज करने वाले राजाओं का समय घरेलू लड़ाई में ही बीता और वह तराई पर ध्यान न दे सके। इस वहज तराई पर पर कठेर के हिन्दू मुखिया का कब्ज़ा हो गया था। राजा बाजचंद अपनी शिकायत लेकर बादशाह शाहजहाँ के पास पहुचे। खूब सारे तोहफे भी ले गये – चंवर गाय, कस्तूरी मृग, चँवर, सोने चाँदी के बर्तन इत्यादि। राजा ने बादशाह को कठेडियों की जुल्म की दास्तान सुनाई। बादशाह ने कहा इस समय लड़ाई है, वो भी युद्ध में शामिल हो जावे और जीत में उन्हें भावर- तराई का छेत्र दिया जाएगा। वहाँ उस समय 1654-55 में गढ़वाल सेना भेजी जा रही थी, ये भी वहाँ भेजे गये। गढ़वाल के युद्ध में राजा ने बहुत बहादुरी दिखाई , इसलिए इन्हें बहादुर की उपाधि दी गयी। राजा को जीत में वादेअनुसार तराई का छेत्र भी मिला। इसे भूप सिंह की पुत्री तीलू रौतेली ने पराजित किया। इसने शकों तथा हुणियो से सीरदी नामक नगद कर वसूलना शुरू किया । इसने तिब्बत में आक्रमण किया । बाजपुर नामक सहर बाजचंद ने ही बसाया था। इन्होने गढ़वाल बधानगढ़ व् लोहबागढ़ दोनों पर चढाई की, और जुनागढ़ का किला भी छीना, वहाँ से नंदादेवी को लाये और मल्लामहल में स्थापित किया। इस राजा का शाशन-काल काफी तेजस्वी रहा। इन्होने कई परगने फतह किये। राज्य का विस्तार बढाया और कई नये सुधार किये, पर भाग्य की बात, इनका अंतिम काल बहुत बुरा रहा। शाहजहाँ की तरह इनको उन्माद हो गया था, इनके पुत्रकुँवर उद्योत चंद ने भी शाशन की बागडोर सँभालने के लिए बगावत की थी। राजा को हरवक्त संदेह रहता था की कब कोई मार डाले, इस भय से की कोई उन्हें मार न डाले। इसलिए उन्होंने अपने सब पुराने नौकर निकाल दिए, राजा की मृत्यु सन 1678 में अल्मोड़ा में हुई।
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राजा उद्योत चंद -: राजा उद्योत चंद 1678 में गद्दी पर बैठे उद्योत चंदराजा बाज बहादुर चंद की मृत्यु के पश्चात निर्विरोध व् ख़ुशी के साथ राजा बने। लोग भी प्रसन्न हुए की बुढा अन्यायी राजा मर गया है। अपने पिता की तरह यह भी विद्या अनुरागी तथा शिक्षा-प्रेमी थे। इन्होने दूर-दूर देशों के विद्वानों को अपने यहाँ, बुलाया और कुमाऊ में बसने का मौका दिया। बरम मुवानी पिथौरागढ से इसका ताम्रलेख प्राप्त होता है, जिसने नेपाल को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनायी तथा अजमेरगढ़ में अधिकार करने का उल्लेख किया गया है। इन्होने तल्ला महल का निर्माण करवाया। यह राजा धर्म-कर्म के बड़े पक्के थे। इन्होने कई मंदिर बनवाये एवं यज्ञ किये। अपना अंतिम समय आते देखकर इन्होने अपने जीवन का अंतिम समय पूजा व् प्रार्थना में व्यतीत किया और अपने पुत्र ज्ञानचंद को गद्दी सौंप परलोक सिधार गये।

राजा ज्ञानचंद -: राजा ज्ञानचंद को वैसे राजकाज इनके पिताराजा उद्योत चंद ने पहले ही सौंप दिया था। पूर्व के राजाओं द्वारा प्राय: गद्दी पर बैठते ही डोटी (तब का एक स्वतंत्र राज्य) पर चढाई करते थे वैसे ही अब चंद वंश के उत्तराधिकारी ने गढ़वाल पर चढाई करने का नियम सा बना लिया था। 1699 पर गढ़वाल पर आक्रमण कर राजा ज्ञानचंद की फौज श्रीनगर गढ़वाल (गढ़वाल की राजधानी) तक पहुच गयी थी। इसने बघानगढ़ी को लूट कर नन्दादेवी की स्वर्ण प्रतिमा अल्मोड़ा में स्थापित की। 10 वर्षतक राज कर यह स्वर्गसिधार गये, इनके बाद इनके पुत्र कुं. जगतचंद गद्दी पर बैठे।

राजा जगतचंद -: इन्होने भी गद्दी पर बैठते ही पिंडारी व् लोहबा के रास्ते गढ़वाल पर चढाई की, गढ़वाल के राजा विवश होकर देहरादून भाग गये। गढ़वाल का राज्य इन्होने एक ब्राह्मण को दान में दे दिया। लूट में प्राप्त धन को इन्होने गरीबों व् अपने सिपाहियों में बाँट दिया। कुछ धन नजराने में दिल्ली के बादशाह महम्मद शाह के पास भी भेजा। इन्होने जुए के ऊपर राज-कर बैठाया। इतिहासकार एटकिन्सन के मुताबिक राजा ने यह आमदनी भी दिल्ली दरबार भेजी। राजा जगतचंद का स्वभाव बहुत मिलनसार तथा उच्चे दर्जे का बताया जाता है, वह प्रजा प्रिय राजा थे। सबसे प्रेमपूर्वक मिलते थे और राज-काज में खूब दिलचस्पी लेते थे। चंद वंश का साम्रज्य इनके समय अपने चरम पर था। चारो ओर शांति थी, प्रजा सुखी थी। इनके बाद से ही घरेलू झगड़े आरम्भ हुए, राजा की पकड़ पहाड़ व् मैदान दोनों जगह ढीली होने लगी और चंदवंश की अवनति होने लगी। इसके काल को चन्दो के उत्कर्ष काल कहा जाता हैं।
तथा कुमाऊ का स्वर्ण काल कहा जाता हैं इस राजा के समय दो ग्रन्थ बने
 
1.टीका जगतचन्द्रिका
 
2.टीका दुर्गा की
राजा देवीचंद -: झीझार ताम्रपत्र चम्पावत में इसे “महाराज कुमार” व "श्री देवी सिंह गुसाई जीव” कहा गया है । इसके काल में चाटुकारिता से धन खर्च के कारण इसे कुमाऊ का तुगलक कहा गया।

राजा अजीतचंद -: राजा देवीचंद का कोई वारिस न होने के वजह से दरबारियों ने राजा ज्ञानचंद के नाती अजीतचंद को गद्दी पर बैठाया। यह राजा दरबारियों के हाथ की कठपुतली मात्र था। सारा राज काज मानिक गैंडा व पूरनमल गैंडा बिष्ट के हाथ में ही था, इन्होने बहुत अन्याय किये। जिसे कुमाऊ में गैंडागर्दी के नाम से जाना जाता है। राजा अजीतचंद भी इसी गैंडागर्दी के शिकार हुए उन्हें भी मानिक चंद व् पूरनचंद ने लात, घूंसों से पीटकर लकवाग्रस्त कर दिया और अंततः राजा अजीतचंद मारे गये।
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कल्याण चन्द चतुर्थ -: राजा अजीतचंद की मृत्यु के पश्चात इनके 18 दिन के पुत्र राजा कल्याण चन्द चतुर्थ को राज्यधिकारी बनाया गया। इसके समय में 1730-1737 के मध्य कुमाऊ क्षेत्र में रोहिलो बरेली के मुसलमान का आक्रमण हुआ मुसलमानों ने अल्मोड़ा पहुचकर सब मंदिर तोड़ दिए, सोने-चाँदी की मूर्तियाँ, कलश, बर्तन आदि गलाकर सब अपने साथ ले गये। लोग घर छोडकर जंगलो में भाग गये, रोहिलो ने राजसी दफ्तर व् कागजात जला दिए। जिस वजह से कुमाऊ के इतिहास की सामग्री को भारी नुकसान हुआ। रोहिले 7 महीने तक कुमाऊ में रहे। एक संधि हुए जिसमे कुमाऊ छोड़ने के अवज में राजा ने रोहिल्लो को 3 लाख रुपिये नगद दिए। यह धन गढ़वाल नरेश प्रदीपशाह ने उधार दिए थे। राजा प्रदीपशाह अपने साथ राजा कल्याणचंद को लाये और उन्हें कुमाऊ की गद्दी पर विराजित किया। दोनों राजाओं के इस बीच काफी घनिष्ठता बड़ी। जो कुछ बर्बादी मंदिर, महलों तथा किलों की रोहिलों ने की थी कल्यांचंद ने उसकी मरमत करायी। सन 1745 में रोहिलों ने दोबारा आक्रमण किया, इस बार कुमाऊ की फौज ने अदम शाहस एवं वीरता दिखाते हुए रोहिलों को मार भगाया। इसने अल्मोड़ा में चौमेला महल का निर्माण किया कल्याण चन्द चतुर्थ के समय प्रसिद्ध कवि शिव ने कल्याण चन्द्रोदमय की रचना की अपने अन्त समय में राजा कल्याणचंद को आँखों की बीमारी हो गयी थी, सभी ने इस बीमारी को राजा के लिए कुकर्मो का फल माना। राजा ने मृत्यु से पूर्व अल्पवयस्क कुँवर दीपचंद को राजगद्दी सौंपी और पं. शिव देव जोशी को राज्य का संरक्षक बनाया।

राजा दीपचंद -: राजा दीपचंद गद्दी पर बैठते समय बाल्यवस्था में थे, पं. शिवदेव जोशी ने ही सम्पूर्ण राज्यकाज संभाला। इस राजा के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना पानीपत का तीसरा युद्ध है। सन 1761 में मराठों के विरुद्ध लड़ाई में दिल्ली सल्तनत ने कुमाऊ नरेश से मदद मांगी थी। 4000 कुमाउनी सैनिक सेनापति हरिराम एवं उप-सेनापति बीरबल नेगी के आधिपत्य में भेजी गयी। इस लड़ाई में कुमाऊ सेना और रोहिल्ले एक साथ मिलकर मराठो का सामना किया। कुमाऊ सेना ने गजब का शाहस एवं वीरता दिखाई, सन 1962 में युद्ध खत्म होने पर कुमैया सेना वापिस लौट आई। राजा दीपचंद के समय की दूसरी मत्वपूर्ण घटना गढ़वाल के राजा प्रदीपशाह के साथ युद्ध है। राजा प्रदीपशाह ने मांग रखी कि 
1.राजा दीपचंद उनको चाचा मान कर पत्रों में जयदेव लिखें.
2.कुमाऊ द्वारा दबाये गये गढ़वाल के सारे छेत्र को वापिस करे अन्यथा गढ़वाल के राजा सारे कुमाऊ पर अधिकार कर लेगा।
3.रामगंगा को गढ़वाल, कुमाऊ की सरहद मानी जाए
राजा दीपचंद ने प्रथम दोनों मांगे मान ली, परन्तु रामगंगा को सरहद मानने से इंकार कर दिया। अपने सलाहकारों की बातों में आकर गढ़वाल राजा ने आक्रमण कर दिया, तामाढ़ोंन के पास युद्ध हुआ। गढ़वाल राजा की बहुत बुरी हार हुई, राजा जान बचाकर जैसे तैसे वापिस अपने राज्य की तरफ भागे। पं. शिवदेव जोशी ने भागते हुए राजा का पीछा न कर धर्म एवं बहादुरी का काम किया। इस बात से राजा प्रदीपशाह प्रभावित हुए। फिर दोनों राजाओं के बीच संधि हुई, पगड़ी का आदान प्रदान हुआ। इस तरह आपसी भाईचारा एवं शांति स्थापित हुई। पं. शिवदेव जोशी ने बड़ी कुशलता से राज्य चलाया, जरुरत पड़ने पर दमनकारी नीति भी अपनाई। राजा की भी इनपर कृपा बनी रही। सन 1764 में पं. शिवदेव जोशी का काशीपुर में निधन हो गया। इनके मृत्यु के साथ ही चंद वंश की जड़े उखड़ने लगी।

राजा मोहनचंद -: मोहन सिंह ने राजा दीपचंद एवं उसके पुत्रों को षड्यंत्र रच मार डाला और स्वयं मोहनचंद के नाम से गद्दी पर बैठ गया। इसी राजा के समय में गढ़वाल के राजा ललितशाह ने कुमाऊ पर आक्रमण कर अपने अधीन कर दिया। राजा प्रदीपशाह के पुत्र राजा ललितशाह को पं. शिव देव जोशी ने पत्र भेज, राजा मोहनचंद के खूनी शाशन पर अंकुश लगाने के लिए आमंत्रित किया था। सेनापति प्रेमपति खंडूरी की अगुवाई में राजा ललितशाह की फौज आगे बड़ी और अल्मोड़ा को जीता। मोहनचंद अपनी जान बचाकर लखनऊ के नवाब की शरण में चले गये और फिर वहाँ से रामपुर।

राजा प्रद्युम्नचंद -: राजा ललितशाह ने अल्मोड़ा पहुँच, पं. शिवदेव जोशी की सलाह पर अपने बेटे प्रद्युम्न शाहकोराजा दीपचंद का धर्मपुत्र बना का राजा प्रद्युम्नचंद के नाम से चंदो की राजगद्दी पर बैठाया।राजा ललितशाह की मलेरिया से पीड़ित हो कर मृत्यु हो गयी,अतः उनके बड़े पुत्रजयकीर्तिशाह गढ़वाल की राजगद्दी पर बैठे।राजा जयकीर्तिशाह ने पत्र भेज राजा प्रद्युम्न चंद को लिखा की वे यथोचित सम्मान दिखाए एवं पत्र द्वारा भी सम्मान सूचित करें।जिसके जबाव में लिखा गया की कुमाऊ ने कभी गढ़वाल की कभी भी महत्ता स्वीकार नहीं किया है और वह हर तरह से उस गद्दी की मान-प्रतिष्ठा की रक्षा करंगे, जिस पर की वह बैठे है।इस उत्तर को सुनकर गढ़वाल के राजा निरुतर हो गये, पर दिल ही दिल में रूठ गये।इस दौरान गद्दी से भगाए हुए मोहनचंद राज्य वापिस पाने की कोशिस करने लगे।1400 नागो की फौज लेकर मोहनचंद ने प्रयास भी किया जिसे हर्षदेव जोशी ने विफल किया।सुशिक्षित राजा के फौज के आगे नागा साधू न टिक सके।इस बीच राजा जयकीर्ति शाह ने कुमाऊ पर आक्रमण कर दिया, किन्तु राजा की मृत्यु हो गयी।कुमाऊ फौज ने शिवदेव जोशी के नेतृत्व में खूब लूटपाट मचाई, मदिरो को भी लूटा।राजा जयकीर्ति शाह के मरने पर पराक्रम शाह ने राजा बनना चाहा, परन्तु राज्य के पंचो ने पं. हर्ष देव जोशी के पास सुचना भेजी कि गढ़वाल राज्य का बंदोबस्त राजा प्रद्युम्नचंद की मर्जी के मुताबिक हो।निश्चय हुआ कि गढ़वाल-कुमाऊ का एक ही राजा हो,राजा प्रद्युम्न चंद दोनों राज्यों के राजा बने ये फैसला पराक्रम शाह के अतिरिक्त सभी को पसंद आया।गढ़वाल के प्रबध हेतु राजा प्रद्युम्न चंद गढ़वाल गये, कुमाऊ का प्रबंध हर्षदेव जोशी के हाथ में रहा। राजाप्रद्युम्नचंद, प्रद्युम्न शाह के नाम से गढ़वाल के राजा बने।7 वर्ष तक कुमाऊ की राजगद्दी पर बैठ कर प्रद्युम्न चंद राजा मोहनचंद के षड्यंत्र के शिकार हुए, और मजबूरी वश उन्हें कुमाऊ की राजगद्दी छोडनी पड़ी।

राजा मोहनचंद (दूसरी बार) -: अनेकों जगह भटक-भटक कर अंततः मोहनचंद दोबारा राजगद्दी पर बैठने में कामयाब रहे।दोबारा गद्दी पर बैठते समय राज्य खजाना पुरी तरह खाली हो गया था।फौज को देने के लिए भी धन नहीं था।राजा मोहनचंद ने ‘माँगा’ कर लगाया।पं. हर्ष देव जोशी ने फौज जुटाकर मोहनचंद के विरुद्ध युद्ध किया और विजय भी हासिल की।राजा मोहनचंद को कैद में डाल दिया जहाँ उनकी मृत्यु हो गयी।मोहनचंद के मरने के बाद पं. हर्षदेव जोशी फिर से कुमाऊ के सर्वेसर्वा बन गये पर वह अच्छी तरह से जानते थे वह किसी चंद के नाम से खुद तो राज्य कर सकते थे, किन्तु वह स्वयं राजगद्दी पर नहीं बैठ सकते।राजा उद्योत चंद के एक रिश्तेदार कुं. शिवसिंह उन्हें मिले, अतः उन्ही को शिवचंद के नाम से राजा बनाया गया।यह नाम- मात्र के राजा थे।इन्होने बस एक साल राज किया।

राजा महेन्द्रचंद (1788-1790) -: पं. हर्षदेव जोशी ज्यादा दिनों तक कुमाऊ का प्रबंधन न सभाल सके।1788 में राजा मोहनचंद के पुत्र महेन्द्रचंद गद्दी पर बैठे। पं. हर्षदेव जोशी गढ़वाल को भाग गये।1790 में नेपाल के गोरखाओ ने राजा महेन्द्रचंद को हवालबाग में एक साधारण से युद्ध में पराजित कर अल्मोड़ा पर अधिकार कर लिया। गोरखाओ सेनापति अमर सिंह थापा से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।और फिर गोरखाओ ने सम्पूर्ण कुमांऊ पर अधिकार कर लिया। यह चन्द वंश का अन्तिम शासक था। इस प्रकार चंद राजवंश का अंत हो गया।
चंद वंश का इतिहास बहुत ही गहन एवं विस्तृत है।उस इतिहास के कुछ एक अंश यहाँ पर लिखे गये है।चंद वंश में हुए विभिन्न राजाओं के राज्यकाल के अनुरूप चंद वंश का इतिहास बताने की कोशिश की गयी है।रोहिलों एवं गोरखाओं के आक्रमण से इस इतिहास से जुडी काफी कड़ियाँ नष्ट जरूर हुई है।यह नोट्स पूर्णतः ‘कुमाऊ का इतिहास – बद्रीदत्त पाण्डे’, एवं अन्य श्रोतों से ली गयी है




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